अक्षत, कुमकुम, केसर पूजा के तीन जेवर
यदि पूजा में अक्षत, कुंकुम और केसर का प्रयोग किया जाए तो घर में लक्ष्मी का निवास रहता है । लेकिन ध्यान रहे कि अक्षत के चावल साबुत हों ।
किसी भी पूजा या शुभ कार्य के दौरान जिन मुख्य सामग्री से देवी-देवताओं और यजमान को तिलक किया जाता है, उनमे प्रमुख है अक्षत यानि साबुत चावल, कुमकुम, केसर । इसके साथ आप चंदन भी उपयोग कर सकते हैं । इनकी महिमा और महत्व अलग-अलग हैं, जैसे-
चन्दन च अक्षतस्य महापुण्यं पवित्रं पाप नाशनम् । आपदा हर्त्रे नित्यं च लक्ष्मी बसत सर्वदा ॥
इसका अभिप्राय है कि पूजा-पाठ के उपरांत चंदन और अक्षत धारण करने वाले श्रद्धालु को महान पुण्य मिलता है । उसका मन पवित्र रहता है और पापों का नाश होता है । उसकी आपदाएं समाप्त हो जाती हैं और हमेशा ही उसके घर में लक्ष्मी का निवास रहता है । इस बात की सावधानी भी रखनी चाहिए कि अक्षत यानि चावल टूटे हुए नहीं, बल्कि साबुत हों । खंडित चावलों का अक्षर रूप में प्रयोग करने से शुभ फल नहीं मिलता है ।
श्रीखंड चन्दनम दिव्यम गन्धाड्यम् सुमनोहरम्। विलेपनं सुरश्रेष्ठं ! चन्दनम् प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् । ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥
ॐ महा लक्ष्म्यै नमः । गंधम समर्पयामि ॥
ॐ कुंकुमम कामदं दिव्यम कुंकुमम कामरूपिणाम । अखण्डाकामसौभाग्यम कुंकुमम प्रतिगृह्यताम ॥
ॐ महा लक्ष्म्यै नमः । कुंकुमम समर्पयामि ॥
इन श्लोकों का अर्थ हैं कि ईश्वर की आराधना करने से पहले सभी देवी-देवताओं को स्नान कराने के बाद चंदन, कुमकुम, केसर और हल्दी मिश्रित रोली लगाने से भगवान सदैव प्रसन्न रहते हैं । ऐसा करने से सांसारिक जीवन में ज्यादा कष्ट नहीं आते हैं । भगवान को अर्पित किया हुआ अक्षत, रोली और चंदन का श्रंगार स्वयं भी करने से दैहिक, दैविक, भौतिक पापों का नाश होता है। रोग-व्याधियां घटती हैं । मान-सम्मान प्राप्त होता है और धन-धान्य से परिपूर्ण जीवन मोक्ष के लिए तत्पर रहता है ।